शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

माई हमरा खातिर आ हमनी कुल पांचों भाइयों खातिर 'जिउतिया' कईले बाड़ी , ऐ उमिर मे ,जब आदमी के चलल फिरल  मुस्किल  हो गइल बा , ई माईएये के जिगरा बा  आ  उनकरे प्यार बा का हमनिके चारों पांचों भाई ,अब ठीक बानी जा ,हंसत खेलत बानी जा आउर फूलल-फलल जातानी जा. कैसे चुका पाई आदमी माई के करज़, आ आज  के ज़माना  मे अक्सर ई सुने के मिलेला कि 'फलना अपना माई के घर से निकाल देहलस', बेइज्जत कईलस . हम त भगवान से इहे प्रार्थना करब , कि हमार माई हमरा ऊपर छाया लेखा बनल रहस आ उनके कौनो तकलीफ से पाहिले हमके तकलीफ हो जाय. मानव मन बहुत से भ्रान्ति आ दुश्चिंता मे जिएला , आ ई दरअसल एगो कमजोरी ह, लेकिन ईहो बात सच बा कि बिना कमजोरी के आदमी'आदमी' ना रह जाई , उ भगवान हो जाई.त हम माई  के उपकार कब्बो ना भूल सकब. 'जिउतिया' मे अपना लइकन खातीर निर्जला बरत कईल जाला, आ चौबीस घंटा के बाद भी जेतना देर हो सके , महतारी अपना लइकन खातिर 'खर' करेली. एह ज़माना मे आधुनिक नारी सायद एकर 'महत्वा ना बुझिहें, चाहे एके महज ढोंग के श्रेणी मे रख दिहें, पर सचाई एतने बा कि माई के मर्म उहे बुझ सकेला जेकर लईका  होखे , आ कौनो तकलीफ मे पड़ल होखे. 'जिउतिया' के हिंदी मे 'जीवित्पुत्रिका' नाम से जानल जाला ,आ कहावुत ह कि जब 'महाभारत काल मे उत्तरा के संतान के हत्या भइल ,आ उ श्रीकृष्ण जी से प्रार्थना कईली कि उनकर संतान पुनर्जीवित हो जाय , तब भगवान उनके ई प्रेरणा देहलें, वोइसे 'किवदंती चाहे जौन होखे ,ई बरत मे महतारी के श्रधा आ अपना लइकन के प्रति चिंता , पूजनीय बा, आ हमार सलाह बा उ नालायक लइकन से  जे अपना महतारी के भूल गएल बाडन सन  ,आ केवल बर्तमान मे जिए खातिर माई के छोड़ के भागत बाडन  सन  , केवल 'baghban ' देखके 'आंस '  बहईला से महतारी -बाप के प्रति श्रध्हा ना देखावल जा सकेला , ओकर उपायों ढूंढें के पड़ी......

गुरुवार, 16 सितंबर 2010

हम  बल्लिआटिक ,आज श्रीगणेश करतानी ,विघ्नविनाशक,गौरी-शिवसुत ,गणपति, गजानन के  नाम लेके...आशीर्वाद चाहतानी  प्रभु राउर.....!